सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद लोगों ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी
हरिद्वार/ऋषिकेश, सूर्य ग्रहण की अवधि खत्म होने के बाद लोगों ने गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई। मंगलवार शाम सदी के आखिरी सूर्य ग्रहण का सूतक खत्म होते ही श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगायी। घाट परिसर में मौजूद भिक्षुओं को दान देकर पुण्य कमाया। वहीं तड़के सुतक काल के चलते बंद हुए मंदिरों के कपाट भी खोल दिए गए। दीवाली के अगले दिन मंगलवार को कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या का ग्रहण सूतक लगने के बाद तीर्थनगरी में मुखर्जी मार्ग में गोपाल मंदिर, अद्वैतानंद मार्ग, त्रिवेणीघाट आदि मार्गों में सोमेश्वर, बनखंडी, वीरभद्र महादेव आदि मंदिरों के कपाट तड़के से ही बंद रहे।
दोपहर तक श्रद्धालु त्रिवेणीघाट परिसर और घरों में कीर्तन भजन करते रहे। कई घरों में सुबह नियमित पूजा पाठ भी नहीं किया गया। सूर्यग्रहण के असर को कम करने के लिए दूध और खाने के बर्तन में तुलसी के पत्ते डाले गए। शाम करीब 5.36 बजे ग्रहण का मध्यकाल शुरू हुआ और श्रद्धालुओं ने त्रिवेणीघाट का रुख किया। ग्रहण का मोक्षकाल शाम 6.30 बजे रहा। त्रिवेणीघाट में श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगायी। विधिविधान से पूजा-अर्चना और अन्न, वस्त्र आदि का दान देकर पुण्य अर्जित किया। पंडित कमल डिमरी ने बताया कि सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद गंगा में स्नान की मान्यता है। यही वजह है कि ऋषिकेश में गंगा स्नान के लिए घाटों में श्रद्धालु पहुंचे। अधिष्ठात्री देवी महाकाली की पूजा दीपावली अमावस्या को गौरीशंकर महादेव त्रिवेणी घाट ऋषिकेश में आस्था और उल्लास के साथ संपन्न हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ अथर्ववेदाचार्य महंत गोपाल गिरी की अध्यक्षता में हुआ। कोलकाता से पंडित बी चटर्जी, सुबेंद्र गोस्वामी ने काली का पुराण मतानुसार अनुष्ठान आदि संपन्न करवाया। पूजा के साथ चंडी पाठ हवन हुआ। माता को नैवेद्य, खीर, खिचड़ी, सब्जी का भोग लगाकर प्रसाद बांटा गया। मंगलवार को सूर्यग्रहण के सूतक के कारण 2.45 बजे मंदिर बंद कर दिया गया, जो बुधवार को गोवर्धन पूजा के बाद खोले जाएंगे। सूर्य ग्रहण के सूतक के कारण मंगलवार सुबह की गंगा आरती नहीं हुई। सुबह 4 बजे के बाद ही मंदिरों को बंद कर दिया गया था। ग्रहण समाप्त होने के बाद शाम को गंगा आरती हुई। आरती से पहले स्थानीय लोगों ने हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान किया। दीपावली के एक दिन बाद सूर्य ग्रहण शाम चार बजकर 29 मिनट पर शुरू होकर शाम 6 बजकर 9 मिनट पर खत्म हुआ। ग्रहण काल से करीब 12 घंटे पहले सूतक काल सुबह चार बजे शुरू हो गया था। जिसके चलते हरकी पैड़ी समेत अन्य मंदिरों में सुबह की आरती नहीं हुई और सूतक काल में मंदिर भी बंद रहे। पंडितों का कहना है कि ग्रहण काल में किया गया जप, तप और दान अश्वमेघ यज्ञ के बराबर होता है।